धूनीवाले दादाजी | Dhuniwale Dadaji Khandwa

धूनीवाले दादाजी | Dhuniwale Dadaji Khandwa

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको दादाजी धूनीवाले (Dhuniwale Dadaji) के बारे में कुछ जानकारी देना चाहते हैं हम आपको यह बताएं कि उन्हें धूनीवाले दादाजी क्यों कहते हैं, खंडवा (Khandwa) को दादाजी की नगरी क्यों कहते हैं और भी इसके अलावा कई जानकारी आपको देंगे उम्मीद है आपको पसंद आएगी इसलिए पूरा पढ़िए आपको दादाजी के बारे में बहुत सारी जानकारी जानने को मिलेगी तो चलिए शुरू करते हैं।

जन्म एवं परिचय

धूनी वाले दादाजी जिनका  प्रारंभिक नाम स्वामी केशवानंद जी है यह भारत के महान संतों में गिने जाते हैं कहा जाता है कि धूनी वाले दादा जी का जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक छोटे से गांव साईं खेड़ा में यह एक पेड़ से प्रकट हुए थे। दादा जी ने साईं खेड़ा में कई चमत्कार किए कई लीलाऐ दिखाई। साईं खेड़ा में सालों तक चमत्कार दिखाने के बाद सन 1930 में दादाजी खंडवा जिला आ गए एवं खंडवा में कई चमत्कार करने के बाद अंत मे यहां पर समाधि ले ली। 

आज दादाजी महाराज खंडवा में पूजनीय एवं समस्त खंडवा की बेशकीमती धरोहर एवं पहचान बन गए हैं । दादाजी धूनीवाले का अपने भक्तों के बीच में वही स्थान है जैसा कि शिर्डी में  साईं बाबा का अपने भक्तों के बीच है। दादा जी का समाधि स्थल खंडवा शहर में है, इसी कारण खंडवा जिले को दादाजी की नगरी भी कहा जाता है।

दादाजी को धूनीवाले क्यों कहते है

दादा जी एक बहुत बड़े संत थे जो कि प्रतिदिन पवित्र अग्नि जिसे की धुनि माई कहा गया है उसके समक्ष  ध्यान मग्न होकर बैठते थे इसलिए उन्हें  धूनीवाले दादा कहा जाने लगा।

धुनि माई

दादा जी महाराज ने सबसे पहले साई खेड़ा में धुनि प्रज्वलित की थी उसके बाद जब वे खंडवा जिले में आए तब उन्होंने खंडवा में भी धुनि माई को अपने हाथ से प्रज्वलित किया था जो कि आज तक प्रज्वलित है कहा जाता है कि दादाजी धुनि माई में चने वगैरा डाला करते थे एवं ने चमत्कार से सोने-चांदी में बदल दिया करते थे इसके अलावा भी धुनि माई के कई चमत्कार हैं।

Dhuni mai khandwa
धूनी माई दादाजी मंदिर खंडवा

छोटे दादाजी

छोटे दादा जी का जन्म राजस्थान में हुआ था इनका प्रारंभिक नाम भंवरलाल था एक बार भंवरलाल दादा जी से मिलने पहुंचे मुलाकात के बाद उन्होंने दादाजी से आकर्षित होकर अपना सारा जीवन उनको समर्पित कर दिया। भंवर लाल बहुत ही शांत स्वभाव के व्यक्ति थे वह बिना कुछ कहे बिना कुछ सुने दादा जी की सेवा में हमेशा तत्पर रहते थे एवं लगे रहते थे दादाजी उनसे काफी प्रसन्न हुए इसलिए उन्होंने भंवरलाल को अपने परम प्रिय शिष्य के रूप में स्वीकार किया एवं उनका नाम हरिहरानंद रख दिया, तब से उन्हें छोटे दादा जी के नाम से भी जाना जाता है एवं दादा जी की समाधि लेने के बाद उन्हें  उत्तराधिकारी बनाया गया।

दादा दरबार

खंडवा में दादा जी महाराज का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है जो कि लगभग 14 एकड़ में फैला हुआ है यह उनके समाधि स्थल पर ही बनाया गया है यह मंदिर दादा जी के परम शिष्य श्री हरिहर भोले भगवान ( हरि हरानंद जी ) जिन्हें की छोटे दादा जी भी कहते हैं उन्होंने बनवाया था जब छोटे दादा जी ने भी समाधि ले ली तब उसके बाद आज यह मंदिर ट्रस्ट द्वारा चलाया जा रहा है।

गुरु पूर्णिमा

हमारे भारत में गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है आषाढ़ माह में खंडवा में गुरु पूर्णिमा के दिन छोटे दादा जी एवं बड़े दादा जी को गुरु के रूप में पूजा जाता है, गुरु पूर्णिमा के पर्व को अत्यंत ही हर्ष और उत्साह के साथ मनाया जाता है ।

गुरु पूर्णिमा के दिन खंडवा में महाराष्ट्र एवं आसपास के स्थानों से भक्त झंडा लेकर आते हैं और दरबार की झलक प्राप्त करते है एवं दादाजी के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। यहां पर 2 से 3 दिन में लाखों भक्त आते है और दादा जी का दर्शन करते हैं गुरु पूर्णिमा के दिन खंडवा का नजारा देखने लायक होता है।

धूनीवाले दादा मंदिर कैसे पहुंचे

धूनीवाले दादाजी का मंदिर खंडवा रेलवे स्टेशन से मात्र 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर है, हम कई तरीकों से दादाजी मंदिर जा सकते है-
रेलवे मार्ग (Railway)-
यदि हम रेल मार्ग से खंडवा आना चाहे तो भारत के लगभग सभी जगह से खंडवा आने के लिए ट्रेन उपलब्ध है।
सड़क मार्ग (Rodway)-
यदि हम रोडवे की बात करें तो इंदौर से 135 किलोमीटर एवं भोपाल से 175 किलोमीटर के साथ आप खंडवा पहुंच सकते हैं।
वायुमार्ग (Air)-
यदि आप वायु मार्ग से आना चाहे तो यहां पर सबसे पास का जो हवाई अड्डा है वह देवी अहिल्या एयरपोर्ट है जो कि इंदौर में स्थित है और वह खंडवा से लगभग 140 किलोमीटर दूर है।

 

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